Photon(Concept Of Photon)
प्लांक के विचारों के आधार पर 1905 में
आइन्सटीन ने प्रस्तावित किया कि प्रकाश ऊर्जा (व्यापक रूप में विधुत चुम्बकीय
विकिरण) विविक्त्त इकाइयों से निर्मित होती है जिन्हें विकिरण ऊर्जा के क्वान्टा
कहा जाता है। इन्हें अब फोटोन(Photon) के नाम से जानते है।
फोटॉनों(Photons) के कुछ महत्वपूर्ण गुणधर्म निम्नलिखित
है –
1. निर्वात में प्रत्येक फोटॉन सदैव प्रकाश की चाल 3x108 m/s से चलता है।
2. प्रत्येक फोटॉन की एक निश्चित
ऊर्जा(Photon energy) होती है तथा एक निश्चित संवेग होता है। v आवृत्ति के विकिरण के फोटॉन की ऊर्जा
होती है -
तथा संवेग होता है -
यहाँ h
= 6.63 X 10-34 J.s = 4.1 X 10-15 eV.s = प्लांक नियतांक
3. फोटॉन(Photon) की किसी द्रव्य कण (जैसे
इलेक्ट्रॉन) से संघट्ट में कुल ऊर्जा तथा कुल संवेग संरक्षित रहते हैं।
4. फोटॉन(Photon) विद्युत उदासीन
होते हैं एवं विद्युत एवं चुम्बकीय क्षेत्रों के द्वारा विक्षेपित नहीं होते।
5. यदि किसी दी गई आवृत्ति
के प्रकाश की तीव्रता बढ़ाई जाती है तो किसी दिए गए क्षेत्रफल से किसी दिए गए समय
में गुजरने वाले फोटॉनों की संख्या ही बढ़ती है। प्रत्येक फोटॉन की ऊर्जा यथावत ही
रहती है।
6. फोटॉन का विराम द्रव्यमान (Photon mass) (rest mass) शून्य होता है।
आइन्सटीन
प्रकाश विधुत समीकरण-
(Einstein's Photoelectric Equation)
(Einstein's Photoelectric Equation)
प्रकाश का धात्विक सतह पर आपतन होने पर, फोटॉन
धातु के मुक्त इलेक्ट्रानो से टक्कर करते है इस स्थिति में यदि इलेक्ट्रान फोटॉन
से ऊर्जा E प्राप्त कर बिना किसी अन्य टक्कर के बाहर आते है तो इनकी गतिज ऊर्जा
होगी। यदि इलेक्ट्रान बाहर आने से पूर्व कुछ टक्करें करते है तो इनकी गतिज ऊर्जा
से कम होगी। इस प्रकार धातु से उत्सर्जित प्रकाशिक इलेक्ट्रानो की गतिज ऊर्जा
शून्य से लेकर अधिकतम मान के मध्य कुछ भी हो सकती है।
यदि इस अधिकतम मान को Kmax से
व्यक्त करे तो –
उपरोक्त समीकरण को आइन्सटीन प्रकाश विधुत समीकरण कहते है।
प्रकाश
विधुत समीकरण के आधार पर प्रकाश विधुत प्रभाव के प्रायोगिक परिणामों की व्याख्या–
1. समीकरण के अनुसार प्रकाशिक इलेक्ट्रानो
की अधिकतम ऊर्जा Kmax आपतित प्रकाश की आवृत्ति के साथ रैखिकतः
बदलती है तथा तीव्रता पर निर्भर नहीं करती। यह परिणाम प्रायोगिक प्रेक्षणों के
अनुरूप ही है।
2. गतिज ऊर्जा कभी भी ऋणात्मक नहीं होती
अतः प्रकाश विधुत समीकरण में यह अंतर्निहित है कि प्रकाश विद्युत प्रभाव
प्रेक्षणीय होने के लिए आवश्यक है कि
अतः स्पष्ट है कि इस प्रकार एक देहली
आवृत्ति अस्तित्व में आती है। जिससे कम आवृत्ति का प्रकाश चाहे कितनी ही तीव्रता
का हो प्रकाश विद्युत प्रभाव उत्पन्न नहीं करेगा। यह परिणाम भी प्रायोगिक
साक्ष्यों के अनुरूप है।
3. प्रकाश की फोटॉन अवधारणा के आधार पर
प्रकाश की तीव्रता प्रति एकांक क्षेत्रफल पर प्रति एकांक समय में आपतित फोटॉन
संख्या के अनुक्रमानुपाती है। फोटॉनों के अधिक संख्या में आपतित होने पर उत्सर्जित
प्रकाशिक इलेक्ट्रॉनों की संख्या भी अधिक होगी अर्थात् प्रकाश विद्युत धारा भी
अधिक होगी। अतः प्रतिबंध के अन्तर्गत प्रकाश विद्युत धारा प्रकाश तीव्रता के
अनुक्रमानुपाती होगी।
4. प्रकाश विद्युत समीकरण के प्रतिपादन में मूल विचार एक इलेक्ट्रॉन द्वारा एक फोटॉन के अवशोषण पर आधारित है जिसे एक संघट्ट के रूप में माना जा सकता है। चूंकि संघट्ट में लगने वाला समय नगण्य होता है अतः अवशोषण की प्रक्रिया लगभग तात्क्षणिक ही है। इस प्रकार प्रकाश विद्युत प्रभाव में प्रकाश आपतन तथा इलेक्ट्रॉन उत्सर्जन में काल पश्चता नहीं होगी। यह भी प्रायोगिक प्रेक्षणों के अनुरूप ही है।
4. प्रकाश विद्युत समीकरण के प्रतिपादन में मूल विचार एक इलेक्ट्रॉन द्वारा एक फोटॉन के अवशोषण पर आधारित है जिसे एक संघट्ट के रूप में माना जा सकता है। चूंकि संघट्ट में लगने वाला समय नगण्य होता है अतः अवशोषण की प्रक्रिया लगभग तात्क्षणिक ही है। इस प्रकार प्रकाश विद्युत प्रभाव में प्रकाश आपतन तथा इलेक्ट्रॉन उत्सर्जन में काल पश्चता नहीं होगी। यह भी प्रायोगिक प्रेक्षणों के अनुरूप ही है।
प्रकाश
की द्वैत प्रकृति –
(Dual Nature Of Matter)
(Dual Nature Of Matter)
सत्रहवीं शताब्दी तक प्रकाश के कुछ ज्ञात
गुण इस प्रकारे थे (1) प्रकाश का सरल रेखीय पथ पर गमन (2) प्रकाश का समतल एवं वक्रीय
पृष्ठों द्वारा परावर्तन (3) दो माध्यमों के अतःपृष्ठ पर अपवर्तन (4) प्रकाश का वर्ण
विक्षेपण
प्रकाश का कोई पुंज को किसी प्रयोग में
कण सदृश्य व्यवहार दर्शाता है वहीं पुंज किसी अन्य प्रयोग में तरंग व्यवहार दर्शा सकता
है। इस सन्दर्भ में यह कहा जा सकता है कि प्रकाश का कण प्रतिरूप तथा तरंग प्रतिरूप
एक दूसरे के पूरक है। ध्यान दे की किसी भी एक प्रयोग में प्रकाश तंरग एवं कण दोनों
व्यवहार एक साथ नहीं दर्शाता है।
दे
ब्राग्ली परिकल्पना तथा द्रव्य तरंगों का तरंग दैर्ध्य –
(de-Broglie Hypothesis)
(de-Broglie Hypothesis)
सन् 1924 में फ्रेंच भौतिकी दे-ब्रॉगली ने परिकल्पना प्रस्तुत की जिस
प्रकार प्रकाश (विधुत चुम्बकीय किरण) ऊर्जा द्वैत लक्षण दर्शाती है तो उसी प्रकार द्रव्य को भी द्वैत लक्षण दर्शाना चाहिए अर्थात् द्रव्यकणों को भी विशिष्ट
परिस्थितियों में तरंगों के रूप में व्यवहार करना चाहिए। दे-ब्राग्ली ने सुझाव
दिया कि फोटॉन के लिए प्राप्त सूत्र द्रव्य कणों पर भी लागू होना चाहिए अर्थात्
संवेग p के कण को एक तरंग दैर्ध्य से संबद्ध किया जा सकता है जो इस प्रकार दी जाती
है
जहाँ m कण का द्रव्यमान तथा v इसकी चाल है। को द्रव्य तरंग (matter
wave) का तरंगदैर्ध्य या
दे-ब्राग्ली तरंग दैर्घ्य भी कहा जाता है।