Hello Students, We are providing description about Extrinsic Semiconductor, Types of Extrinsic Semiconductor and P-Type Extrinsic Semiconductor, N-Type Extrinsic Semiconductor and P-N Junction.
Extrinsic Semiconductor
परिभाषा – नैज अर्धचालक की चालकता में वृद्धि करने के लिए उसमें उपयुक्त
अपद्रव्य या अशुद्धि मिलाने पर प्राप्त अर्धचालक, बाह्य या अपद्र्व्यी अर्धचालक (Extrinsic
Semiconductor) कहलाता है I
अपमिश्रण या मादन(Doping)
- किसी नैज अर्धचालक की विशिष्ठ चालकता
में वृद्धि के लिए इसमें अशुद्धियाँ मिलाने की प्रक्रिया डोपिंग कहलाती है।
पंच
संयोजी अशुद्धि(दाता अशुद्धि) - तत्व जिनके प्रत्येक परमाणु पर पांच संयोजी
इलेक्ट्रॉन्स हो, दाता अशुद्धियॉं कहलाती है।
उदाहरण - आर्सेनिक(As), एन्टीमनी(Sb)
, फॉस्फोरस(P) आदि।
त्रिसंयोजी
अशुद्धि(ग्राही अशुद्धि) - तत्व जिनके
प्रत्येक परमाणु पर तीन संयोजी इलेक्ट्रॉन्स हो , त्रिसंयोजी
(ग्राही) अशुद्धियाँ कहलाती है।
उदाहरण - इंडियम(In), गैलियम(Ga),
एलुमिनियम(Al), बोरॉन(B) आदि।
अपद्र्व्यी अर्धचालक दो प्रकार के होते है –
1.
N-प्रकार के अपद्र्व्यी अर्धचालक (N-Type Extrinsic
Semiconductor)
2.
P-प्रकार के अपद्र्व्यी अर्धचालक (P-Type Extrinsic Semiconductor)
1. N-प्रकार का अपद्र्व्यी अर्धचालक
जब एक चतुर्संयोजी
नैज अर्धचालक में पंच संयोजक तत्व की अशुद्धि अत्यल्प मात्रा में मिश्रित की जाती
है तब N प्रकार का अर्धचालक प्राप्त होता है I प्रत्येक
पंच संयोजी अशुद्धि परमाणु क्रिस्टल को एक इलेक्ट्रॉन प्रदान करता है। n-प्रकार अर्धचालक में मुख्य आवेश वाहक इलेक्ट्रॉन्स होते है तथा अल्प आवेश
वाहक होल्स होते है।
बैण्ड मॉडल के
आधार पर N प्रकार के अर्धचालकों की व्याख्या –
जब किसी नैज
अर्धचालक में दाता प्रकार की अशुद्धियाँ अपमिश्रित की जाती है तो इन अशुद्धियों के
कारण वर्जित ऊर्जा अन्तराल में चालन बैण्ड के तल के थोडा नीचे इन अशुद्धि परमाणुओं
के ऊर्जा स्तर उपस्थित हो जाते है I चालन बैण्ड की न्यूनतम ऊर्जा Ec
तथा इन ऊर्जा स्तरों की ऊर्जा Ed का अन्तर अत्यल्प होता है I अत: इन
दाता स्तरों के इलेक्ट्रान क्रिस्टल के तापीय कम्पनों से इतनी ऊर्जा आसानी से
ग्रहण कर इन स्तरों से चालन बैण्ड पहुँच जाते है जहाँ अब यह धारा प्रवाह में
योगदान कर सकते है I
इसके अतिरिक्त कुछ
इलेक्ट्रान तापीय ऊर्जा से संक्रमण करके भी चालन बैण्ड में पहुँचते है जिससे की
संयोजी बैण्ड में होल उत्पन्न हो जाते है I परन्तु अब संयोजी बैण्ड में होल
संख्या, चालन बैण्ड में इलेक्ट्रान संख्या की तुलना में कम रह जाती है, क्योंकि तापजनित
इलेक्ट्रॉन्स के साथ चालन बैण्ड को दाता ऊर्जा स्तरों से भी इलेक्ट्रान प्राप्त हो
रहे है I
2. P-प्रकार का अपद्र्व्यी अर्धचालक
जब
नैज सिलिकॉन अथवा जर्मेनियम में त्रिसंयोजक तत्व की अत्यल्प अशुद्धि का अपमिश्रण
कर दिया जाता है तव P-प्रकार का अर्धचालक प्राप्त होता है I प्रत्येक त्रिसंयोजी
अशुद्धि परमाणु क्रिस्टल को एक होल प्रदान करता है। P-प्रकार अर्धचालक में मुख्य
आवेश वाहक होल्स होते है तथा अल्प आवेश वाहक इलेक्ट्रॉन्स होते है।
बैण्ड मॉडल के
आधार पर N प्रकार के अर्धचालकों की व्याख्या –
P-प्रकार अर्धचालक में होल्स से सम्बद्ध ऊर्जा स्तर संयोजी
बैंड से ठीक ऊपर स्थित होता है। ये ऊर्जा स्तर ग्राही स्तर कहलाते है। ग्राही स्तर
तथा संयोजी बैंड के उच्चतम ऊर्जा स्तर के मध्य ऊर्जा के अंतर का मान वर्जित ऊर्जा
अंतराल से बहुत कम होता है। कमरे के ताप पर संयोजी बैंड के ताप उद्दीप्त
इलेक्ट्रॉन्स ग्राही स्तर में आसानी से स्थानान्तरित हो जाते है तथा इसलिए संयोजी
बैंड में बड़ी संख्या में होल्स निर्मित होते है। जब P-प्रकार
अर्धचालक को बैटरी के सिरों से जोड़ा जाता है तो ये होल्स धारावाहक का कार्य करते
है।
P-N संधि (P-N Junction)
जब किसी P-प्रकार अर्धचालक से उचित विधि द्वारा(इनकी संपर्क सतह पर क्रिस्टल संरचना संतत बनी रहे) N-प्रकार अर्धचालक के संपर्क में लाया जाता है तो दोनों अर्धचालकों की इस
व्यवस्था को P-N सन्धि कहते है।
अर्धचालक पदार्थ (Si या Ge) का एक
टुकडा जिसके एक भाग को N-प्रकार अशुद्धि से तथा दूसरे भाग को
P-प्रकार अशुद्धि से डोपित किया जाता है तो यह P-N सन्धि की तरह व्यवहार करता है।
P-N संधि में
अवक्षय परत (ह्यसी क्षेत्र) का निर्माण :-
P-N सन्धि के P-भाग में होल्स की उच्च सांद्रता तथा N-भाग में इलेक्ट्रोन्स की उच्च सांद्रता होती है। P-भाग
से होल्स तथा N-भाग से इलेक्ट्रॉन संधि में विसरित होते है।
संधि से विसरित होकर P-भाग में जाने वाले इलेक्ट्रॉन्स,
होल्स के साथ पुनः संयोजित हो जाते है। इस पुनः संयोजन के
परिणामस्वरूप संधि के P-भाग में होल्स गायब हो जाते है तथा
अतिरिक्त ऋणावेश आ जाता है। जब N-भाग से संधि द्वारा
इलेक्ट्रॉन्स विसरित होते है तो N-भाग में अतिरिक्त धनावेश आ जाता है। P-N सन्धि के
आस-पास पतला भाग जिसमें गतिहीन धनावेश व ऋणावेश होते है,अवक्षय
परत(depletion layer) कहलाती है।
संधि अवरोध अथवा
रोधिका विभव :-
अवक्षय परत में धनात्मक तथा ऋणात्मक गतिहीन आयन्स होते है।
वे धनात्मक तथा ऋणात्मक आयन्स अवक्षय परत की मोटाई के बराबर दूरी से पृथक होते है।
इस प्रकार संधि के सिरों पर एक विभवान्तर स्थापित हो जाता है जो संधि में से
इलेक्ट्रॉन्स व होल्स के विसरण को रोकता है। इस विभवान्तर को निरोधी (रोधिका) विभव
(Vb) कहते
है।
नोट
– रोधिका विभव का परिमाण P-N संधि निर्माण के लिए उपयोग में लिए गए अर्धचालक की
प्रकृति, इसके ताप तथा अपमिश्रण की मात्रा पर निर्भर करता है I सामान्य रूप से
उपलब्ध सिलिकॉन P-N संधि के लिए यह लगभग 0.7 वोल्ट व जर्मेनियम P-N संधि के लिए
0.3 वोल्ट होता है I
· अवक्षय परत की चौड़ाई d, P व N प्रभागों में उपस्थित अशुद्धियों की
मात्रा पर निर्भर करती है यदि अपमिश्रण अधिक मात्रा में उपस्थित है तो अवक्षय परत
की चौड़ाई बहुत कम होती है I