ठोस अवस्था
ठोस – ठोस, पदार्थ की वह अवस्था है जिसमें कण सघन संकुलित तथा एक
दूसरे के साथ प्रबल अन्तरा-आण्विक बल द्वारा बंधे रहते है।
ठोस के गुण -
1.
ठोस अवस्था में कण अनियमित गति करने में
सक्षम नहीं होते है।
2.
इनका आकार तथा आयतन निश्चित होता है ।
3.
ठोसों में उच्च घनत्व होता है ।
4.
ठोसों के गलनांक उच्च होते है जो कि
बन्धन ऊर्जा के मान या सामर्थ्य पर निर्भर करता है ।
5.
अधिकांशत: असंपीडय होते है ।
6.
ये अत्यन्त कम विसरण दर्शाते है ।
7.
ठोसों में अंतर आण्विक आकर्षण बल प्रबल
होते है ।
ठोसों के प्रकार
ठोसों के मुख्यतः दो
प्रकार है –
1. क्रिस्टलीय ठोस
2. अक्रिस्टलीय
ठोस
1. क्रिस्टलीय ठोस
–
ऐसे ठोस पदार्थ
जिनमें अवयवी कण (परमाणु, आयन या अणु) त्रिविम में एक निश्चित ज्यामितीय व्यवस्था
में होते है वे क्रिस्टलीय ठोस कहलाते है ।
क्रिस्टलीय ठोसो
के गुण –
· इस
प्रकार के ठोसों में परमाणुओं या अणुओं त्रिविम जाल में नियमित पैटर्न में
व्यवस्थित होते है ।
· इनमें
सुस्पष्ट ज्यामिति तल, तीखें गलनांक, गलन की निश्चित ऊष्मा तथा विषमदैशिक गुण होते
है।
विषमदैशिकता का अर्थ होता है कि ये सभी दिशाओं में भिन्न भौतिक गुण प्रदर्शित करते है ।जैसे: विधुत तथा तापीय चालाकताएं विभिन्न दिशाओं में भिन्न होती है ।
· ये
सामान्यत: असंपीडय होते है ।
· इनमें
अवयवी कणों की दीर्घपरासी व्यवस्था पायी जाती है ।
· क्रिस्टलीय
ठोसों के सामान्य उदाहरण है – क्वार्टज, हीरा इत्यादि ।
2. अक्रिस्टलीय
ठोस –
ऐसे ठोस पदार्थ
जिनमें अवयवी कण त्रिविम में किसी निश्चित ज्यामितीय व्यवस्था में नहीं होते है
अक्रिस्टलीय ठोस कहलाते है ।
अक्रिस्टलीय ठोस
के गुण –
· इस
प्रकार के ठोसों में, निर्माण संघटकों का विन्यास नियमित नहीं होता है ।
· इन्हें
उच्च श्यानता युक्त अतिशीतित द्रव माना जाता है जिसमें अणुओं का आकर्षण बल उच्च
होता है, इसके कारण पदार्थ दृढ हो जाता है लेकिन इसकी संरचना में कोई नियमितता
नहीं होती है ।
· इनके तीक्ष्ण
गलनांक नहीं होते ।
· इनमें
अवयवी कणों की लघुपरासी व्यवस्था पायी जाती है ।
· ये
समदैशिक होते है अर्थात, सभी दिशाओं में समान भौतिक गुण प्रदर्शित करते है ।
· इन
ठोसों के सामान्य उदाहरण- काँच, रबर, प्लास्टिक, मोम, कागज, लकड़ी इत्यादि ।
विभिन्न बन्धन
बलों के आधार पर ठोसों का वर्गीकरण
क्रिस्टलों का अध्ययन –
क्रिस्टल: एक क्रिस्टल ठोस पदार्थ का समांगी भाग होता है जो कि एक
दूसरे के साथ निश्चित कोण बनाते हुए समतल सतह द्वारा बन्धित संरचनात्मक इकाइयों के
नियमित तल द्वारा बना होता है ।
त्रिविम जालक: त्रिविम
में विभिन्न स्थलों में संघटकों जैसे परमाणु, आयन तथा अणुओं का विन्यास जालक
कहलाता है ।
एकक कोष्ठिका: त्रिविम जालक में
सबसे छोटी पुनरावृति इकाई, जो कि दिए गये पदार्थ के क्रिस्टल में निरन्तर
पुनरावृति करती है, एकक कोष्ठिका कहलाती है ।
फलक: क्रिस्टल
की समतल सतह फलक कहलाती है ।
किनारा: एक
किनारा दो निकटवर्ती फलकों के सम्पर्क द्वारा बनता है ।
कोना: दो
या अधिक किनारों के संपर्क बिंदु को कोना कहते है ।
अन्तराफलकीय कोण: दो
प्रतिच्छेदों के लम्बरूपों के बीच बना कोण अन्तराफलकीय कोण कहलाता है ।
एकक या इकाई
कोष्ठिका के पैरामीटर –
1. एकक कोष्ठिका
के किनारों की विमाओं को a, b तथा c के द्वारा प्रदर्शित किया जाता है, जो कि
परस्पर लम्बवत हो भी सकते है और नहीं भी ।
2. किनारों के
युग्मों के मध्य कोण क्रमश: एल्फा, बीटा एवं गामा
अतः एकक कोष्ठिका
के छ: पैरामीटर है – a,b,c,एल्फा, बीटा एवं गामा
क्रिस्टल जालक के
अभिलक्षण –
1. क्रिस्टल जालक
में प्रत्येक बिन्दु जालक बिन्दु या जालक स्थल कहलाता है ।
2. प्रत्येक जालक
बिन्दु क्रिस्टल जालक में अवयवी कण को निरुपित करता है, जो एक परमाणु, एक अणु या
एक आयन हो सकता है ।
3. जालक बिन्दुओं
की त्रिविम व्यवस्था से क्रिस्टल ज्यामिति निर्धारित होती है ।
4. निश्चित
ज्यामितीय व्यवस्था का निर्धारण इन जालक बिन्दुओं पर सीधी रेखाओं से जोड़कर
निर्धारित की जाती है ।
क्रिस्टलों के
प्रकार –
क्रिस्टलों के
प्रकार मुख्यतः एकक कोष्ठिका के प्रकार पर निर्भर करता है –
1. मूल (आद्य) एकक
कोष्ठिका –
अवयवी कण एकक कोष्ठिका के कोनों पर व्यवस्थित होते है ।
2. केन्द्रित एकक
कोष्ठिका – इस
प्रकार की एकक कोष्ठिका में अवयवी कण कोनों के अतिरिक्त अन्य स्थितियों पर
व्यवस्थित होते है ।
केन्द्रित एकक
कोष्ठिका मुख्यतः तीन प्रकार की होती है –
i.
काय-केन्द्रित एकक कोष्ठिका –
अवयवी कण एकक कोष्ठिका के कोनों पर तथा कोष्ठिका के केन्द्र पर व्यवस्थित होते है ।
ii. फलक-केन्द्रित एकक कोष्ठिका – ऐसी
एकक कोष्ठिका जिसमें कोनों पर उपस्थित अवयवी कणों के साथ ही प्रत्येक फलक के
केन्द्रों पर भी एक-एक अवयवी कण उपस्थित होता है, फलक-केन्द्रित एकक कोष्ठिका
कहलाती है ।
iii.
अंत्य-केन्द्रित एकक कोष्ठिका – ऐसी
एकक कोष्ठिका जिसमें कोनों पर उपस्थित अवयवी कणों के साथ ही किन्हीं दो आमने-सामने
के फलकों के केन्द्रों पर भी अवयवी कण उपस्थित होते है, अंत्य-केन्द्रित एकक
कोष्ठिका कहलाती है ।
सात क्रिस्टल
तंत्र
ब्रैवे क्रिस्टल
जालक