BSER(Rajasthan Board) Class 10 Social Science Notes: भारतीय अर्थव्यवस्था की विशेषताएं एवं नवीन प्रवृत्तियां-1


भारतीय अर्थव्यवस्था की विशेषताएं एवं नवीन प्रवृत्तियां


अर्थव्यवस्था - एक देश या क्षेत्र की वस्तुओं और सेवाओं के उत्पादन, व्यापार, उपभोग आदि क्रियाओं से जुड़ा तंत्र अर्थव्यवस्था कहलाता है। जैसे- भारतीय अर्थव्यवस्था ।

भारतीय अर्थव्यवस्था एक अविकसित अर्थव्यवस्था के रूप में
भारतीय अर्थव्यवस्था में अविकसित अर्थव्यवस्था के निम्न लक्षण विद्यमान हैं-
(i) निम्न प्रति व्यक्ति आय –
भारत में प्रति व्यक्ति आय का स्तर बहुत कम है जो इसके अविकसित अर्थव्यवस्था होने का प्रतीक है। विश्व बैंक के अनुसार 2015 ई. में भारत की प्रति व्यक्ति सकल राष्ट्रीय आय 1590 अमेरिकी डॉलर थी। प्रति व्यक्ति सकल राष्ट्रीय आय में भारत का स्थान विश्व में 176 वां रहा। भारत की प्रति व्यक्ति सकल आय पड़ोसी देशों की तुलना में भी कम है। प्रति व्यक्ति आय के निम्न स्तर के फलस्वरूप लोगों का जीवन स्तर भी निम्न बना रहता है।
(ii) जीवन की निम्न गुणवत्ता –
शिक्षा और स्वास्थ्य जीवन की गुणवत्ता के दो सबसे प्रभावी निर्धारक और संकेतक हैं। इनके अभाव में आय अर्थहीन हो जाती है। भारत में शिक्षा का स्तर बहुत कमजोर है जो निम्न साक्षरता दर से प्रतिबिम्बित होता है। वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार भारत में साक्षरता दर 74.04 प्रतिशत थी जनसंख्या का लगभग एक चौथाई भाग आज भी निरक्षर स्वास्थ्य-स्तर को जन्म के समय जीवन–प्रत्याशा से मापा जा सकता है। विश्व बैंक के अनुसार भारत में वर्ष 2014 में जन्म के समय जीवन–प्रत्याशा 68 वर्ष थी। शिक्षा तथा स्वास्थ्य का निम्न स्तर भी भारतीय अर्थव्यवस्था के अविकसित स्वरूप को व्यक्त करता है।
जन्म के समय जीवन प्रत्याशा- चालू जनांकिकीय स्थितियों में एक नवजात की प्रत्याशित औसत आयु का सांख्यिकीय माप जन्म के समय जीवन प्रत्याशा कहलाती है।
(ii) गरीबी की समस्या –
सभी अविकसित राष्ट्रों की तरह भारत भी गरीब की समस्या का सामना कर रहा है। सुरेश तेन्दुलकर के अनुमानों के अनुसार वर्ष 2011-12 में भारत में 21.92 प्रतिशत लोग गरीब थे। स्वतन्त्रता के पश्चात् अभी तक गरीबी का निवारण नहीं हो पाया है। इसे भारतीय अर्थव्यवस्था की सबसे बड़ी चुनौती माना जा सकता है। मूलभूत आवश्यकताओं की पूर्ति की दिशा में बहुत धीमी प्रगति हुई है। अन्य देशों की तुलना में यह प्रगति प्रभावहीन प्रतीत होती है। विकास के लाभ समाज के निम्न एवं कमजोर वर्गों तक नहीं पहुँच पाये हैं। आज भी जनसंख्या का लगभग एक चौथाई भाग निर्धनता के दुश्चक्र में फंसा हुआ है। निर्धनता की समस्या के रहते कोई भी राष्ट्र पिछड़ेपन से बाहर नहीं आ सकता। अतः हमारी अर्थव्यवस्था निश्चित ही एक अविकसित अर्थव्यवस्था है।
(iv) कृषि पर अत्यधिक निर्भरता –
जैसे-जैसे अर्थव्यवस्था का विकास होता है, कृषि क्षेत्र पर इसकी निर्भरता में कमी आती है तथा उद्योग एवं सेवा क्षेत्र पर निर्भरता में वृद्धि होती है। यद्यपि भारत में भी कृषि पर निर्भरता में कमी आयी है, लेकिन यह कमी धीमी रही है। स्वतंत्रता के समय लगभगू 72 प्रतिशत जनसंख्या कृषि पर आश्रित थी आज भी कुल रोजगार का लगभग 49 प्रतिशत कृषि तथा सहायक क्षेत्रों में कार्यरत हैं। कृषि क्षेत्र से गैर कृषि क्षेत्र की ओर श्रम का पलायन तो हुआ है, लेकिन यह बहुत धीमा रहा है। कृषि पर अत्यधिक निर्भरता भारतीय अर्थव्यवस्था के अविकसित स्वरूप का प्रतीक है।
(v) जनांकिकीय कारक –
अनेक जनांकिकीय कारक भारतीय अर्थव्यवस्था के पिछड़ेपन को व्यक्त करते हैं। भारत में जन्म-दर बहुत ऊँची हैं। मातृ मृत्यु दर, बाल मृत्यु दर, शिशु मृत्यु दर का ऊँचा स्तर भी बना हुआ है। भारतीय जनसंख्या की वृद्धि दर बहुत अधिक है। 2001 से 2011 के दशक में भारत की जनसंख्या की वृद्धि दर 17.64 प्रतिशत रही है। भारतीय जनसंख्या का आकार बहुत बड़ा है तथा यह निरन्तर तेजी से बढ़ता जा रहा है।
जनांकिकी- मानव जनसंख्या का वैज्ञानिक तथा सांख्यिकीय अध्ययन जनांकिकी कहलाता है।
(vi) बेरोजगारी की समस्या –
अविकसित राष्ट्रों का एक मुख्य लक्षण संरचनात्मक तथा छिपी हुई बेरोजगारी की समस्या है, इन राष्ट्रों की दोषपूर्ण संरचना के कारण तथा लगातार होते संरचनात्मक परिवर्तनों के कारण यह बेरोजगारी उत्पन्न होती है। भारत की कृषि पर अत्यधिक निर्भरता तथा उद्योगों एवं सेवा क्षेत्र के धीमे विकास के कारण इसे छिपी हुई बेरोजगारी का सामना करना पड़ता है। यद्यपि भारत में बेरोजगारी के सभी प्रकार पाये जाते है, लेकिन यहां संरचनात्मक तथा छिपी हुई बेरोजगारी की समस्या सर्वाधिक गम्भीर है। छिपी बेरोजगारी का सही अनुमान लगाना अत्यधिक कठिन है।  
छिपी बेरोजगारी - छिपी बेरोजगारी का अर्थ है कि व्यक्ति रोजगार में लगा हुआ तो दिखाई देता है लेकिन उसका उत्पादन में योगदान बहुत कम अर्थात् लगभग शून्य होता है। जैसे- भारत में एक कृषक परिवार के सभी सदस्य घरेलू कृषि कार्य में लगे हुए होते हैं, लेकिन उनमें अनेक सदस्यों का योगदान लगभग शून्य रहता है।
(vii) पिछड़ी हुई तकनीक –
अर्थव्यवस्थाओं के पिछड़ेपन का एक बड़ा कारण उत्पादन की तकनीक का पिछड़ा हुआ होना है। आधुनिक तकनीक के अभाव में उत्पादकता का स्तर निम्न बना रहता है। भारत में धीमे आर्थिक विकास का एक कारण नवीन तकनीक का अभाव है। तकनीक विकास हेतु भारत में बहुत कम खर्च किया जाता है। शोध और अनुसंधान को वांछित महत्व नहीं, मिल पाने के कारण आज भी भारत तकनीकी दृष्टि से अविकसित है।
(viii) अन्य विशेषताएं –
निम्न मानव विकास, व्यापक असमानतायें, कमजोर आधारसंरचना आदि भी भारतीय अर्थव्यवस्था के अविकसित रूप को व्यक्त करते हैं। संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम द्वारा तैयार किये गये मानव विकास सूचकांक में वर्ष 2015 की रिपोर्ट में भारत का स्थान 130 वाँ रहा। भारत में विद्यमान आर्थिक तथा गैर आर्थिक विषमताएं भी चिन्तनीय हैं। भारत की आधार संरचना भी बहुत कमजोर है। जिसके कारण भारतीय अर्थव्यवस्था निम्न उत्पादकता, ऊँची उत्पादन लागतों तथा उत्पादन में धीमी वृद्धि का शिकार रही है। स्पष्ट है कि भारतीय अर्थ व्यवस्था एक अविकसित अर्थव्यवस्था है।
आधार संरचना -
आधार संरचना का तात्पर्य उन वस्तुओं और सेवाओं की उपलब्धता से है जो अर्थव्यवस्था की कार्य पद्धति को सुगम बनाते हैं। ये उत्पादकता में वृद्धि करते हैं तथा आर्थिक विकास के लिए आधार प्रदान करते हैं। सड़क, विद्युत, शिक्षा, स्वास्थ्य, बीमा, बैंकिंग आदि आधार संरचना के प्रमुख उदाहरण हैं।
भारतीय अर्थव्यवस्था एक विकासशील अर्थव्यवस्था के रूप में
भारतीय अर्थव्यवस्था तेज गति से विकास के मार्ग पर आगे बढ़ रही है। यहां पिछले वर्षों के दौरान प्रभावी आर्थिक एवं सामाजिक सुधार के साथ अनेक ऐसे अनुकूल परिवर्तन हुए हैं, जिनके फलस्वरूप इसे विकासशील अर्थव्यवस्था कहा जाना अधिक उपयुक्त होगा।
(i) राष्ट्रीय आय तथा प्रति व्यक्ति आय में सतत् एवं तीव्र वृद्धि –
भारत की राष्ट्रीय आय तथा प्रति व्यक्ति आय में होने वाली सतत एवं तीव्र वृद्धि भारतीय अर्थव्यवस्था के विकासशील स्वरूप का सर्वाधिक प्रभावशाली लक्षण है। 1950 से 1980 के दौरान भारतीय अर्थव्यवस्था की विकास दर मात्र 3.5 प्रतिशत प्रति वर्ष रही। डॉ0 राजकृष्णा ने इसे हिन्दू विकास दर कहा है। ग्यारहवीं पंचवर्षीय योजना (2007-2012) के दौरान मारत की विकास दर 8 प्रतिशत रही। वर्तमान समय में भारतीय अर्थव्यवस्था विश्व की सबसे तेज बढ़ती अर्थव्यवस्थाओं में से एक है। आर्थिक विकास का एक महत्त्वपूर्ण मापदण्ड प्रति व्यक्ति आय में वृद्धि है। वर्ष 2015-16 में प्रति व्यक्ति आय में 6.2 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गयी है। राष्ट्रीय आय तथा प्रति व्यक्ति आय की यह सतत तथा तीव्र वृद्धि भारतीय अर्थव्यवस्था की एक अच्छी उपलब्धि कही जा सकती है।
(ii) अर्थव्यवस्था की संरचना में परिवर्तन –
विकास के साथ-साथ अर्थव्यवस्था की संरचना में भी परिवर्तन होता है। जैसे-जैसे अर्थव्यवस्था विकसित होती जाती है, राष्ट्रीय आय में प्राथमिक क्षेत्र का अंश गिरता जाता है तथा द्वितीयक एवं तृतीयक क्षेत्र का अंश बढ़ता जाता है। राष्ट्रीय आय में सेवा क्षेत्र को अंश सर्वाधिक तेजी से बढ़ा है। वर्तमान में राष्ट्रीय आय का लगभग 60 प्रतिशत भाग सेवा क्षेत्र द्वारा उत्पादित होता है स्पष्ट है कि भारत की राष्ट्रीय आय में प्राथमिक क्षेत्र का अंश निरन्तर कम तथा द्वितीय एवं तृतीयक क्षेत्र का अंश लगातार बढ़ रहा है। द्वितीयक क्षेत्र की तुलना में तृतीय क्षेत्र अधिक तेजी से बढ़ा है। अर्थव्यवस्था की संरचना का यह परिवर्तन इसके विकासशील  स्वरूप को व्यक्त करता है।
(क) विशाल तथा तेजी से बढ़ता सेवा क्षेत्र –
सभी विकसित राष्ट्रों में विशाल सेवा क्षेत्र पाया जाता है लगातार तेज वृद्धि दर के कारण भारत में भी सेवा क्षेत्र अर्थव्यवस्था का सबसे बड़ा क्षेत्र बन गया है। वर्तमान में अकेला सेवा क्षेत्र राष्ट्रीय आय का लगभग 60 प्रतिशत भाग उत्पादित कर रहा है। विश्व सेवा व्यापार के मामले में भी भारत विश्व के शीर्ष दस राष्ट्रों में शामिल है तथा इसके सेवा क्षेत्र में एक महाशक्ति के रूप में उभरने की प्रबल सम्भावना है। व्यापक तथा लगातार बढ़ता हुआ सेवा क्षेत्र भारतीय अर्थव्यवस्था की विकासशीलता का एक महत्वपूर्ण संकेतक है।
(ख) व्यावसायिक संरचना में परिवर्तन –
भारत में व्यावसायिक संरचना में होने वाले परिवर्तन भी बताते हैं कि भारतीय अर्थव्यवस्था एक विकासशील अर्थव्यवस्था है। 1951 में कार्यशक्ति का लगभग 72 प्रतिशत कृषि तथा सहायक क्षेत्रों में कार्यरत था। परन्तु आज आधे से अधिक कार्यशक्ति उद्योग तथा सेवा क्षेत्र में रोजगार प्राप्त कर रही है।
(iii) सामाजिक तथा आर्थिक आधारसंरचना में सुधार –
भारत में आर्थिक एवं सामाजिक आधारसंरचना में तेजी से सुधार हो रहा है
·       विधुत उत्पादन की भारत की कुल स्थापित क्षमता में पिछले 65 वर्षों में लगभग 100 गुना वृद्धि हुई है
·       स्वतंत्रता के समय भारत में सड़कों की कुल लम्बाई लगभग 4 लाख किलोमीटर थी, जो वर्तमान में लगभग 50 लाख किलोमीटर हो गयी है।
·       साक्षरता दर 2011 में बढ़कर 74.04 प्रतिशत हो गयी है।
·       जीवन प्रत्याशा 2014 में बढ़कर 68 वर्ष हो गयी है।
·       शिक्षा तथा स्वास्थ्य सेवाओं के विस्तार के आधार पर कहा जा सकता है कि भारतीय अर्थव्यवस्था विकास कर रही है।
(iv) अन्य कारक –
भारत की जनसँख्या वृद्धि दर में भी पर्याप्त कमी हुई है। 1961 से 1971 के दशक में भारत में जनसँख्या वृद्धि की दर 24.80 प्रतिशत थी। यह दर 2001 से 2011 के दशक में कम हो कर 17.64 प्रतिशत रह गयी। ये सभी कारक भारतीय अर्थव्यवस्था के विकास के सूचक है।

Tags

Post a Comment

0 Comments
* Please Don't Spam Here. All the Comments are Reviewed by Admin.