Transistor : Types of Transistor and Working


ट्रांजिस्टर (Transistor)
ट्रांजिस्टर एक तीन टर्मिनल वाली अर्द्धचालक युक्ति है जिसमें प्रत्यावर्ती संकेतों के प्रर्वधन की क्षमता होती है
ट्रांजिस्टर का आविष्कार 1948 में संयुक्त राज्य अमेरिका(USA) के बेल टेलिफोन लेबोरेटरी के वैज्ञानिकों, बारडीन(Bardeen), ब्रटैन(Brattain) एवं शॉक्ले (Shockley) ने किया। 


आज ट्रांजिस्टर के कई  प्रकार है जैसे संधि टांजिस्टर (Junction-transistor), क्षेत्र प्रभाव ट्रांजिस्टर (field effect transistor) या FET) एवं धातु अर्धचालक ऑक्साइड क्षेत्र प्रभाव ट्रांजिस्टर(metal-oxide semiconductor field effect transistor या MOSFET) उपलब्ध हैं।

संधि ट्रांजिस्टर (Junction Transistor)
एक सामान्य संधि ट्रांजिस्टर मूलतः एक अपद्रव्यी अर्धचालक (सिलिकॉन या जर्मेनियम) का एक ऐसा एकल क्रिस्टल होता है जिसमें भिन्न चालकताओं के तीन क्षेत्र उपस्थित होते है।

संधि ट्रांजिस्टर दो प्रकार के होते है –
(i) PNP संधि ट्रांजिस्टर
(ii) NPN संधि ट्रांजिस्टर

·        किसी PNP ट्रांजिस्टर में दो P प्रकार के अर्धचालक क्षेत्रों के मध्य N प्रकार के अर्धचालक की अल्प मोटाई का क्षेत्र अन्तर्दावित (sandwiched) होता है।
·        एक NPN ट्रांजिस्टर में दो N प्रकार के अर्धचालक क्षेत्रों के मध्य एक अल्प मोटाई का P प्रकृति का अर्धचालक क्षेत्र अन्तर्दावित होता है।
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PNP एवं NPN दोनों ही प्रकार के ट्रांजिस्टरों के लिये मध्य के क्षेत्र को आधार (base), B कहा जाता है तथा बाहरी भागों में से एक को उत्सर्जक (emitter), E तथा दूसरे को संग्राहक (collector),C कहा जाता है (उपरोक्त चित्रानुसार)।

उत्सर्जक, आधार एवं संग्राहक के मध्य भिन्नता-
·        उत्सर्जक गहन रूप से मादित (dopped) होता है क्योंकि इसका कार्य आधार को अधिक संख्या में बहुसंख्यक आवेश वाहक प्रदान करना होता है।
·        आधार में बहुत ही अल्प मादन होता है। साथ ही यह अल्प मोटाई का होता है ताकि यह उत्सर्जक से आने वाले बहुसंख्यक आवेश वाहकों को पुनः संयोजन के लिये विपरीत प्रकृति के आवेशवाहक अधिक संख्या में प्रदान न कर सके।
·        संग्राहक का कार्य उत्सर्जकता से आधार को पार कर आने वाले बहु संख्यक आवेशों को एकत्र करना होता है। यहाँ मादन उत्सर्जक से कम पर आधार से अधिक अर्थात् मध्यम होता है।
    
PNP तथा NPN ट्रांजिस्टर के प्रतीक नीचे चित्र में प्रदर्शित है –
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यहाँ जिस रेखा खंड पर तीर का चिह्न है वह उत्सर्जक को निरूपित करता है मध्य रेखाखंड आधार को व तीसरा रेखा खंड संग्राहक को प्रदर्शित करता है, तीर की दिशा धारा प्रवाह की दिशा को व्यक्त करती है।

ट्रांजिस्टर क्रिया विधि (Operation of a Transistor) -
टांजिस्टर के उचित विधि से कार्य करने के लिये E-B संधि को अग्र अभिनत एवं B-C संधि को उत्क्रमअभिनत अवस्था में रखा जाता है। इस समय ट्रांजिस्टर का प्रचालन सक्रिय अवस्था में माना जाता है।
परिपथ व्यवस्था - निम्न चित्र में PNP ट्रांजिस्टर के लिये E-B संधि अग्रबायसित है तथा उत्सर्जक में मादन गहन है अतः E-B संधि संकीर्ण होगी जबकि B-C संधि उत्क्रम अभिनत होने के कारण अपेक्षाकृत चौड़ी होगी| E-B संधि पर प्रयुक्त अग्र अभिनत विभवान्तर VEB का मान अल्प (0.5 से 1V) तथा B-C संघि पर प्रयुक्त उत्क्रम अभिनत विभवान्तर VCB अपेक्षाकृत अधिक (5 से 15V) रखा जाता है।
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क्रियाविधि- उपरोक्त चित्र  में PNP ट्रांजिस्टर परिपथ पर यदि विचार करें तो क्योंकि E-B संधि अग्र अभिनत है अतः E क्षेत्र (P प्रकार) के बहुसंख्यक आवेश वाहक ‘होल' बड़ी संख्या में इस संधि के पार विसरित होंगे। इसे उत्सर्जक से आधार में ‘होल' का अन्तः क्षेपण (injection) कहा जाता है। इसी प्रकार आधार जो N प्रकार का अर्धचालक है से इलेक्ट्रॉन संधि को पार कर उत्सर्जक में पहुँचते हैं। दोनो आवेश वाहकों की गति विपरीत दिशाओं में है पर इनके संगत धारा प्रवाह E से B की ओर ही होता है। यह धारा उत्सर्जक धारा IE कहलाती है जो होल व इलैक्ट्रॉन दोनों के कारण है पर आधार क्षेत्र में मादन कम होने के कारण PNP ट्रांजिस्टर के लिये यह धारा मुख्यतः होल के कारण होगी।
♦️ यद्यपि उत्सर्जक से आधार में अन्तःक्षेपित होलों की प्रवृत्ति आधार में उपस्थित इलेक्ट्रॉन से पुनः संयोजन की होती है किन्तु आधार के पतला व कम मादित होने के कारण बहुत कम होल (5 प्रतिशत से भी कम) ही इलेक्ट्रॉनों से पुनः संयोजित होते हैं एवं अधिकाँश होल आधार संग्राहक संधि को पार कर संग्राहक में पहुंच जाते हैं। संग्राहक टर्मिनल के ऋणात्मक होने के कारण ये होल आसानी से संग्राहक टर्मिनल तक पहुँच जाते हैं व इस प्रकार संग्राहक धारा IC का निर्माण करते है।
♦️ उत्सर्जक से आधार में अन्तः क्षेपित कुछ होल आधार में इलेक्ट्रॉन से पुनः संयोजित होते है तथा अल्पमान की आधार धारा IB का निर्माण करते हैं। पुनः संयोजन की प्रक्रिया में नष्ट हुए प्रत्येक इलेक्ट्रॉन की पूर्ति के लिये बैटरी के आधार पर जुड़े ऋणात्मक सिरे से एक इलेक्ट्रॉन आधार को प्रदान किया जाता है। अतः यहाँ आधार धारा IB आधार टर्मिनल B की ओर प्रवाहित होती है
चित्र में दर्शाये गये पूर्ण टांजिस्टर के लिये किरचॉफ धारा नियम का प्रयोग करने पर स्पष्ट है कि उत्सर्जक धारा, आधार धारा व संग्राहक धारा के योग के बराबर होगी-



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