पूर्ण तरंग दिष्टकारी परिपथ में निवेशी प्रत्यावर्ती विभव
के दोनों अर्धचक्रों के दौरान निर्गत दिष्ट धारा प्राप्त होती हैं।
परिपथ व्यवस्था-
निवेशी प्रत्यावर्ती विभव को मध्य निष्कासी ट्रान्सफार्मर की प्राथमिक कुण्डली
से जोड़ दिया जाता हैं ट्रान्सफार्मर की द्वितीय कुण्डली के दोनों A
व B
को संधि डायोड़ D1 व
D2 के P
सिरों पर जोड़ा जाता हैं। डायोड D1 व D2 के N सिरे परस्पर जोड़ कर इस उभयनिष्ठ बिन्दु X तथा ट्रान्सफार्मर की द्वितीयक कुण्डली के मध्यनिष्कासी
बिन्दु (centre
tap) C
के बीच लोड प्रतिरोध RL
जोड़ दिया जाता है। इस प्रकार के मध्यनिष्कासी
ट्रान्सफार्मर के लिये बिन्दु C को निर्देश
शून्य विभव बिन्दु(reference
zero potential)
माना जाता है।
कार्यप्रणाली-
माना पहले धनात्मक अर्धचक्र के लिये द्वितीयक कुंडली का सिरा A धनात्मक है तथा सिरा B ऋणात्मक है। इस अवस्था में डायोड D1
अग्र अभिनत है तथा डायोड D2
उत्क्रम अभिनत, स्पष्टतः डायोड D1 द्वारा धारा चालन होगा परन्तु D2
द्वारा नहीं। अतः इस अर्ध चक्र में धारा D1 से होती हुई X से C की तरफ बहती हुई
RL पर विभवपात करेगी। इस प्रवाह की दिशा चित्र में तीर द्वारा दर्शाई गई है।
निवेशी प्रत्यावर्ती विभव के ऋणात्मक अर्धचक्र में सिरा B धनात्मक व सिरा A ऋणात्मक होगा,
इस कारण डायोड D2
अग्र अभिनत व डायोड D1
उत्क्रम अभिनत होगा। अब डायोड D1 धारा चालन नहीं करेगा पर डायोड D2 से धारा प्रवाहित होगी। इस धारा प्रवाह की दिशा को डैशित तीर (dotted
arrow) से प्रदर्शित किया गया है। यदि लोड प्रतिरोध में धारा
प्रवाह की दिशा अब भी X से C की ओर है। स्पष्टतः
डायोड D1 व D2 के कारण क्रमागत रूप से धारा प्रवाहित होती है पर निवेशी विभव के दोनों
अर्द्धचक्रों में लोड प्रतिरोध RL में धारा प्रवाह एक ही दिशा में हैं इसका कारण पूर्ण तरंग
दिष्टकारी में निर्गत धारा व विभव न केवल एक दैशिक है अपितु स्पंदो की अविरत
श्रेणी भी है। चित्रानुसार निर्गत विभव के तरंग प्रतिरूप में स्पष्ट है कि निवेशी
धारा के एक पूर्ण चक्र (तरंग) के संगत निर्गत विभव में भी एक दैशिक पूर्ण चक्र
(तरंग) प्राप्त हो रहा है अतः इस दिष्टकारी परिपथ को पूर्ण तरंग दिष्टकारी परिपथ
कहा जाता है।
समकारी फिल्टर के उपयोग से पूर्ण तरंग दिष्टकारी से शुद्ध दिष्ट धारा प्राप्त
करना –
पूर्ण तरंग दिष्टकारी से प्राप्त निर्गत विभव (या धारा) के तरंग प्रतिरूप के
अवलोकन से यह स्पष्ट है कि यह विभव एक दैशिक प्रकृति का तो है पर परिणाम में नियत
नहीं है I जबकि परिभाषा में शुद्ध दिष्ट विभव परिणाम से नियत रहता है I कुछ विशेष
परिपथ,
जिन्हें समकारी फिल्टर कहा जाता है, की सहायता से प्रत्यावर्ती घटकों को दिष्ट विभव से पृथक कर
शुद्ध दिष्ट विभव प्राप्त किया जा सकता है। जब दिष्टकारी के निर्गत विभव को प्रयुक्त
फिल्टर के टर्मिनल X
व Y
के मध्य लगाया जाता है तो प्रेरकत्व L के द्वारा उत्पन्न प्रतिबाधा से इस विभव का प्रत्यावर्ती
घटक बाधित होता है व दिष्ट विभव पर कोई प्रभाव नहीं होता है। इसके उपरान्त भी यदि
कुछ प्रत्यावर्ती घटक L
से गुजर कर आगे बढ़ जाये तो भी लोड RL के समान्तर
क्रम में लगा संधारित्र C इस घटक के लिये लघु प्रतिबाधा उत्पन्न करेगा व यह घटक C के द्वारा पाश्र्वपथित (bypassed) हो जायेगा जबकि दिष्टघटक के लिये C अनंत प्रतिबाधा उत्पन्न करता है, अतः यह C से नहीं गुजरकर
RL पर उपलब्ध होगा। इस प्रकार RL पर लगभग परिशुद्ध दिष्ट विभव प्राप्त होगा।