Rajasthan Board Class 10 Science Notes : भोजन एवं मानव स्वास्थ्य I Chapter 1


भोजन एवं मानव स्वास्थ्य
पोषण – विभिन्न जैविक क्रियाओं के आवश्यक पोषक तत्वों का ग्रहण ही पोषण है। ये पदार्थ पाचन क्रिया के माध्यम से जीव के शरीर का अंग बन कर शरीर की विभिन्न आवश्यकताओं की पूर्ति करते है।

संतुलित भोजन – वह भोजन जिसमें जीवन की आवश्यकताओं की पूर्ति के सभी पोषक उपलब्ध हो, संतुलित भोजन कहलाता है।
संतुलित भोजन के लाभ –
·       अच्छे स्वास्थ्य के लिए संतुलित आहार लेने की जरुरत है।
·       शरीर को मजबूत बनाता है।
·       रोगों से लड़ने के लिए रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढाता है।
·       संतुलित आहार दिमाग को तेज तथा स्वस्थ बनाता है।
कुपोषण - लम्बे समय तक जब पोषण में किसी एक या अधिक पोषक तत्व की कमी हो तो उसे कुपोषण कहते है।
कुपोषण के कुप्रभाव - कुपोषण का शरीर पर असर कई प्रकार से देखने को मिलता है पोषण के विभिन्न तत्व विभिन्न आवश्यकताओं की पूर्ति करते है। अतः जिस तत्व की कमी होगी उसके द्वारा किया जाने वाला कार्य नहीं होगा। इस कारण शरीर कई रोगों का शिकार हो सकता है।
विटामिन कुपोषण – पोषण में एक या अधिक विटामिन्स की कमी से होने वाला कुपोषण, विटामिन कुपोषण कहलाता है।
निम्न तालिका में प्रमुख विटामिन की कमी से होने वाले रोग तथा उनके लक्षण दिए जा रहे हैं –

क्वाशिओरकोर (Kwashiorkor) प्रोटीन की कमी से किशोरावस्था में होने वाला रोग।
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लक्षण - बच्चे का पेट फूल जाता है, उसे भूख कम लगती है, स्वभाव चिड़चिडा हो जाता है, त्वचा पीली, शुष्क, काली, धब्बेदार होकर फटने लगती है।
मेरस्मस रोग (Marasmus) प्रोटीन के साथ प्रयाप्त ऊर्जा की कमी से होने वाला रोग।
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लक्षण - शरीर सूख कर दुर्बल हो जाता है, आँखे कांतिहीन एवं अन्दर धँस जाती है।
Note –
·     लौह तत्व रुधिर के हिमोग्लोबिन का भाग होता है इसकी कमी से रक्त हीनता के कारण चेहरा पीला पड़ जाता है।
·       कैल्शियम हड्डियों को मजबूत बनाता है इसकी कमी से हडिड्याँ कमजोर व भंगुर प्रकृति की हो जाती है।
·       आयोडीन की कमी से थायराइड ग्रंथि की क्रिया मंद पड़ जाती है, गलगंड (घेंघा) रोग हो जाता है।
पीने योग्य पानी के गुण व दूषित पानी के दुष्प्रभाव
पीने योग्य जल में निम्न गुण होने चाहिए-
(i) जल में आँखों से दिखने वाले कण और वनस्पति नहीं हो।
(ii) हानि पहुँचाने वाले सूक्ष्म जीव नहीं हो।
(iii) जल का pH संतुलित हो।
(iv) जल में पर्याप्त मात्रा में ऑक्सीजन घुली हो।
दूषित जल के दुष्प्रभाव इस प्रकार हैं
(i) दूषित पानी पीने से विभिन्न रोग कारक शरीर में प्रवेश कर जाते है जैसे विषाणु, जीवाणु, प्रोटोजोआ, कृमि आदि जिनकी वजह से हैजा, पेचिस जैसी बीमारियाँ हो सकती है।
(ii) गंदे पानी से वायरल संक्रमण भी हो सकता है। वायरल संक्रमण के कारण हिपेटाइटिस, फ्लू, कोलेरा, टायफाइड और पीलिया जैसी खतरनाक बीमारियाँ होती है।
बाला या नारु रोग-
रोगजनक - ड्रेकनकुलस मेडीनेसिस नामक कृमि।
संक्रमण - मादा कृमि अपने अंडे सदैव परपोषी (मनुष्य) के शरीर के बाहर जल में देती है, ऐसे संदूषित जल के उपयोग से यह रोग दूसरे लोगों में भी फैल जाता है।
Note - जल-जनित रोगों से बचाव हेतु पानी को छानकर, उबालकर एवं ठंडा कर पीना चाहिए। नदी, तालाब इत्यादि में नहाना एवं कपड़े धोना मना हो एवं समय-समय पर इनकी सफाई होनी चाहिए क्योकि "स्वच्छ जल है तो स्वस्थ कल है”।

मोटापा (Obesity) –
मोटापा वो स्थिति होती है जब अत्यधिक शारीरिक वसा शरीर पर इस सीमा तक एकत्रित हो जाती है कि वह स्वास्थ्य पर हानिकारक प्रभाव डालने लगती है।

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शरीर भार सूचकांक (Body Mass Index: BMI) - मानव भार व लम्बाई का अनुपात होता है। जब 25 किग्रा प्रति वर्ग मीटर के बीच हो तब मोटापा पूर्व स्थिति और जब ये 30 किग्रा प्रति वर्ग मीटर से अधिक हो तब मोटापा होता है।
मोटापा से होने वाले रोग - बहुत से रोगों से जुड़ा है जैसे हृदय रोग, मधुमेह, निद्राकालिन श्वास समस्या, कई प्रकार के कैंसर
और अस्थिसंध्यार्थी।
मोटापे के कारण - मोटापे के कई कारण हो सकते है इनमें से प्रमुख है –
(i) मोटापा और शरीर का वजन बढ़ना।
(ii) ऊर्जा के सेवन और उर्जा के उपयोग के बीच अंसतुलन होना।
(iii) अधिक चर्बी युक्त भोजन करना, जंक फूड व कृत्रिम भोजन करना, कम व्यायाम और स्थिर जीवनयापन, शारीरिक क्रियाओं के सही ढंग से नहीं होने पर भी शरीर पर चर्बी जमा होने लगती है।
(iv) अवटु अल्पक्रियता (हाइपोथाईरायडिज्म) आदि।

रक्तचाप (Blood pressure)
रक्तवाहिनियों में बहते रक्त द्वारा वाहिनियों की दीवारों , पर डाले गए दबाव को रक्तचाप कहते है।
·   किसी व्यक्ति का रक्तचाप सिस्टोलीक डायास्टोलिक रक्तचाप के रुप में अभिव्यक्त किया जाता है। जैसे 120/80, सिस्टोलिक अर्थात ऊपर की संख्या धमनियों के दाब को दर्शाती है इसमें हृदय की मासंपेशियाँ संकुचित होकर धमनियों में रक्त को पम्प करती है डायास्टोलिक रक्तचाप अर्थात नीचे वाली संख्या धमनियों में उस दाब को दर्शाती है जब संकुचन के बाद हृदय की मांसपेशियाँ शिथिल हो जाती है।
·       एक सामान्य व्यक्ति का सिस्टोलिक रक्तचाप पारा के 90 और 120 मिलीमीटर के बीच तथा डायास्टोलिक रक्तचाप पारा के 60-80 मिलीमीटर के बीच होता है।
·       रक्तचाप को मापने वाले यंत्र को रक्तचापमापी (स्फाइग्नोमैनोमीटर) कहते है।
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निम्न रक्तचाप - वह दाब जिसमें धमनियों और नसों में रक्त का प्रवाह कम हो।
लक्षण – निम्न रक्तचाप की स्थिति में मस्तिष्क, हृदय तथा गुर्दे जैसी महत्वपूर्ण इन्द्रियों में ऑक्सीजन व पौष्टिक आहार नही पहुँच पाते है जिससे यह अंग सामान्य रुप से काम नहीं कर पाते है और स्थाई रुप से क्षतिग्रस्त हो सकते है।
उच्च रक्तचाप - धमनियों में अधिक दाब से रक्त के प्रवाह के कारण।
कारण -यह चिंता, क्रोध, ईष्र्या, भ्रम, कई बार आवश्यकता से अधिक भोजन खाने से, मैदे से बने खाद्य पदार्थ, चीनी, मसाले, तेल, घी, अचार, मिठाइयाँ, माँस, चाय, सिगरेट व शराब के सेवन से, श्रमहीन जीवन व व्यायाम के अभाव से हो सकता है। उच्च रक्तचाप का निदान –
(i) ऐसे मरीजों को पोटेशियम युक्त भोजन करना चाहिए।
(ii) भोजन में कैल्शियम (दूध) और मैग्निशियम की मात्रा संतुलित करनी चाहिए।
(iii) संतृप्त वसा (मांस, वनस्पति घी) की मात्रा कम करनी चाहिए।
(iv) नियमित व्यायाम करना चाहिए।
(v) धूम्रपान व मदिरापान नहीं करना चाहिए।
नशीले पदार्थ (Toxic Substance)
1. गुटखा (Gutkha)
सुपारी के टुकड़ो, कत्था, चूना, संश्लेषित खुशबु, धातुओं के वर्क आदि पदार्थों के मिश्रण से गुटखा तैयार किया जाता
है।
कुप्रभाव - गुटके के प्रयोग से जबड़े की माँसपेशियाँ कठोर हो जाने से जबड़ा ठीक से खुलता नहीं है, ऐसा सबम्युकस फाईब्रोसिस रोग के कारण होता है, संश्लेषित पदार्थों में से कई कैंसरजन होने की भी संभावना होती है।

2. तम्बाकू (Tobacco)
तम्बाकू पादप निकोटिएना टोबेक्कम, कूल सोलेनेसी की पत्तियों से प्राप्त किया जाता है। पत्तियों में निकोटिन नामक एल्केलॉयड पाया जाता है।
तम्बाकू के उपयोग से होने वाली हानिया निम्न है –
(i) तम्बाकु के निरंतर संपर्क में आने से मुँह, जीभ, गले व फेफड़ों आदि का कैंसर होने की सम्भावना बढ़ जाती है।
(ii) तम्बाकू में उपस्थित निकोटिन धमनियों की दीवारों को मोटा कर देती है जिससे रक्त दाब व हृदय स्पंदन की दर बढ़ जाती है।
(iii) गर्भवती महिलाओं द्वारा तम्बाकू का सेवन करने पर भ्रूण विकास की गति मंद पड़ जाती है।
(iv) सिगरेट के धुएँ में उपस्थित कार्बन मोनों ऑक्साइड लाल रुधिर कणिकाओं को नष्ट कर रुधिर की ऑक्सीजन परिवहन की क्षमता कम कर देती है।

3. मदिरा (Alcohol) – मदिरा में नशे का कारण एक ही पदार्थ ऐथिल एल्कोहॉल होता है।
मदिरा सेवन से मानव स्वास्थ्य पर होने वाले कुप्रभाव निम्न है
(i) मदिरा पान से एल्कोहॉल रक्त प्रवाह द्वारा यकृत में पहुँचता है अधिक मात्रा में उपस्थित एल्कोहॉल को यकृत, एसीटल्डिहाइड में बदल देता है जो विषैला पदार्थ है।
(ii) एल्कोहॉल के प्रभाव से व्यक्ति के शरीर का सांमजस्य एवं नियंत्रण कमजोर हो जाता है जिससे कार्य क्षमता क्षीण होती है, दुर्घटना की संभावना बढ़ जाती हैं।
(iii) एल्कोहॉल से स्मरण क्षमता में कमी आती है तथा तंत्रिका तंत्र प्रभावित होता है।
(iv) इसके प्रभाव से वसीय यकृत रोग हो जाता है, जिससे प्रोटीन व कार्बोहाइड्रेट संश्लेषण पर प्रभाव पड़ता है।
(v) इससे व्यक्ति की आर्थिक स्थिति कमजोर होती है, तथा सामाजिक प्रतिष्ठा को ठेस पहुँचती है।

4. अफीम (Opium)
अफीम पादप, पैपेवर सोमनिफेरम के कच्चे फल से प्राप्त दूध के सुखाने से बनता है। दूध में लगभग 30 प्रकार के एल्केलॉयड पाए जाते है, इनमें से मार्फीन, कोडिन, निकोटिन, सोमनिफेरिन, पैपेवरिन प्रमुख है।
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अफीम सेवन से मानव स्वास्थ्य पर होने वाले कुप्रभाव –
अफीम का सेवन व्यक्ति को उसका आदी बना देता है। प्रतिरोधक क्षमता कम हो जाने से व्यक्ति बार-बार बीमार रहने लगता है। अंत में असामयिक मृत्यु हो जाती है।

खाद्य पदार्थों में मिलावट के दुष्प्रभाव (Adulteration in food products) -
कोल्डड्रिंक्स (शीतल पेय) में मिलावट के मानव शरीर पर कुप्रभाव –
(i) कोल्डड्रिंक्स में पाए जाने वाले लींडेन, डीडीटी, मेलेथियन और क्लोरपाइरीफॉस कैंसर, स्नायु, प्रजनन सम्बन्धी बीमारी और प्रतिरक्षा तंत्र में खराबी के लिए जिम्मेदार माने जाते है।
(ii) कोल्डड्रिंक्स के निर्माण के समय इनमें फास्फोरीक अम्ल डाला जाता है जो दाँतों पर सीधा प्रभाव डालता है।
(iii) एथलिन ग्लाइकोल रसायन पानी को शून्य डिग्री तक जमने नहीं देता है इसे आम भाषा में मीठा जहर कहा जाता है।
(iv) इसी प्रकार बोरिक, एरिथोरबिक और बैंजोइल मिलकर कोल्डड्रिक्स को अति अम्लता प्रदान करते है जिससे पेट में जलन, खट्टी डकारे, दिमाग में सनसनी, चिड़चिड़ापन, एसिडिटी और हड्डियों के विकास में अवरोध उत्पन्न हो जाता है।
(v) कोल्डड्रिक्स में 0.4 पी. पी.एस सीसा डाला जाता है जो स्नायु, मस्तिष्क, गुर्दा, लिवर, और माँसपेशियों के लिए घातक है। इसमें मिली केफीन की मात्रा अनिद्रा और सिरदर्द की समस्या उत्पन्न करती है।


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