प्रकाश विधुत प्रभाव एवं द्रव्य तरंगे (Photoelectric Effect and Matter Waves)
धातु की सतह से बस ठीक बाहर ही आने (अर्थात् शून्य गतिज ऊर्जा से बाहर आने) के
लिए इलेक्ट्रॉनों को आवश्यक न्यूनतम ऊर्जा की मात्रा को धातु का कार्यफलन (Work
function) कहा जाता है।
कार्यफलन को सामान्यतः से व्यक्त करते
है तथा eV
(इलेक्ट्रॉन - वोल्ट) में मापते हैं।
भिन्न-भिन्न धातुओं के कार्यफलन भिन्न-भिन्न होते हैं जो इनके पृष्ठ की
प्रकृति पर भी निर्भर करते हैं।
किसी धात्विक प्लेट अथवा प्रकाश संवेदी सतह पर किसी विशिष्ट आवृत्ति (specific
frequency) या इससे उच्च आवृत्ति का प्रकाश डाला जाता है तो उससे
इलेक्ट्रॉन उत्सर्जित होते है। इस परिघटना को प्रकाश विद्युत प्रभाव कहते है।
जब धातु के मुक्त इलेक्ट्रॉनों को कार्य फलन के बराबर या इससे अधिक ऊर्जा आपतित
प्रकाश से प्राप्त होती है तो इलेक्ट्रॉन उत्सर्जन होता है। प्रकाश द्वारा जनित होने
कारण ऐसे इलेक्ट्रॉन प्रकाशिक इलेक्ट्रॉन (Photoelectrons) कहे जाते हैं। ऐसे उत्सर्जित इलेक्ट्रॉनों के कारण किसी बंद
परिपथ में प्रवाहित धारा प्रकाश विद्युत धारा (Photoelectric current) कहलाती है।
प्रकाश संवेदी सतह पर एक नियत न्यूनतम मान से कम आवृति का प्रकाश डाला जाए तो
इलेक्ट्रॉनों का उत्सर्जन नहीं होता। आवृति का यह नियत न्यूनतम मान देहली आवृति (Threshold
frequency) कहलाता है तथा इसका मान उत्सर्जक पट्टिका (अथवा प्रकाश
संवेदी सतह) के पदार्थ की प्रकृति पर निर्भर करता है।
धातुओं से इलेक्ट्रॉन उत्सर्जन के लिए अन्य विधियाँ भी है-
यदि धातु का उपयुक्त तापन किया जाए तो अतिरिक्त तापीय ऊर्जा पाकर इलेक्ट्रॉन
धातु से बाहर आ सकते हैं। यह विधि तापायनिक उत्सर्जन” (Thermionic
emission) कहलाती है।
धातुओं पर प्रबल विद्युत क्षेत्र (10-8 V/m
की कोटि का) लगाकर भी इलेक्ट्रॉन उत्सर्जित किए जा सकते हैं
यह विधि क्षेत्र उत्सर्जन" (Field emission) कहलाती है।
इसके अतिरिक्त यदि उच्च गतिज ऊर्जा के इलेक्ट्रॉन धातु पर आपतित हों तो भी
धातुओं से इलेक्ट्रॉन उत्सर्जन संभव है। यह विधि द्वितीयक उत्सर्जन (secondary
emission) कहलाती है
प्रकाश विधुत प्रभाव के प्रायोगिक परिणाम एवं उनकी व्याख्या-
इसमें कॉच अथवा क्वार्टज नली है जो निर्वातित है। इस नली में दो धात्विक
इलेक्ट्रोड
A तथा C है। C
जिसे कैथोड (अथवा उत्सर्जक) कहा जाता है 'धातु की एक पट्टिका है जो प्रकाश संवेदी है। पट्टिका A को
एनोड (या संग्राहक) कहा जाता है। प्रकाश स्त्रोत S से निर्गत प्रकाश गवाक्ष (window) को पार कर उत्सर्जक C पर आपतित होता है।
परिपथ में लगे दिक् परिवर्तक (commutator) की सहायता से A
का विभव C के सापेक्ष
धनात्मक या ऋणात्मक रखा जा सकता है। C पर आपतित प्रकाश के कारण इससे उत्सर्जित प्रकाशिक इलेक्ट्रॉन A की ओर आकर्षित होते हैं यदि A, C की तुलना में धनात्मक है। A द्वारा संग्रहित
इलेक्ट्रॉन बाह्य परिपथ में लगे माइक्रोऐमीटर, बैटरियो इत्यादि से प्रवाहित होते हुए पुनः कैथोड C पर पहुँचते है तथा इस प्रकार परिपथ में धारा स्थापित होती
है जिसे प्रकाश - धारा कहा जाता है।
प्रकाश विधुत धारा पर विभव का प्रभाव –
सर्वप्रथम आपतित प्रकाश की आवृत्ति तथा तीव्रता को निश्चित रखते हुए C पर प्रकाश आपतित किया जाता है।
प्रारम्भ में माना एनोड या संग्राहक के सापेक्ष शून्य विभव पर है। इस स्थिति
में C से उत्सर्जित होने वाले समस्त इलेक्ट्रॉन A तक नहीं पहुँच पाते। किसी दिए समय पर इनमें से अधिकांश
इलेक्ट्रॉन कैथोड (उत्सर्जक) के समीप रहते हुए अन्तराकाशी आवेश (space
charge) का निर्माण करते है। ऋणात्मक प्रकृति का यह अन्तराकाशी आवेश
उत्सर्जक से निर्गत इलेक्ट्रॉनों को प्रतिकर्षित करता है तथापि कुछ इलेक्ट्रॉन
एनोड (संग्राहक) पर पहुँच जाते हैं तथा इस कारण प्रकाश विद्युत धारा होती है।
जब एनोड को कैथोड के सापेक्ष कुछ अल्प धनात्मक विभव दिया जाता है तो और इलेक्ट्रॉन
एनोड की ओर आकर्षित होते जिससे अन्तराकाशी आवेश में कमी आती है तथा प्रकाश विद्युत
धारा बढ़ती है। इस प्रकार धारा एनोड पर आवेशित विभव पर निर्भर करती है। निम्न
चित्र 13.2 में धारा में विभव
के साथ परिवर्तन को दर्शाता है।
यदि ऐनोड विभव में धीरे-धीरे वृद्धि की जाए तो एक ऐसी स्थिति प्राप्त होती है
जब अन्तराकाशी आवेश का प्रभाव नगण्य हो जाता है तथा अब कैथोड से उत्सर्जित सभी
इलेक्ट्रॉन ऐनोड त पचने में सक्षम होते है। तब धारा नियत हो जाती है तथा सतत धारा
कहलाती है। इसे चित्र 13.2 में भाग bc से प्रदर्शित किया गया है। एनोड विभव में आगे और वृद्धि करने पर अब प्रकाशिक
धारा के परिमाण में कोई परिवर्तन नहीं होता।
यदि ऐनोड का विभव कैथोड के सापेक्ष ऋणात्मक कर दिया जाए तो ऐनोड द्वारा
इलेक्ट्रॉनों के प्रतिकर्षण के कारण कुछ इलेक्ट्रॉन पुनः कैथोड पर लौट जाते हैं
तथा धारा के मान में कमी आती है। एनोड पर ऋणात्मक विभुव बढ़ाने पर धारा तेज़ी से
घटती है। ऋणात्मक विभव को मंदक विभव भी कहा जाता है। ऋणात्मक विभव के एक निश्चित
मान Vo पर अंततः धारा शून्य हो जाती है।
नोट:- आपतित विकिरण की एक निश्चित आवृत्ति के लिए ऐनोड पर इस ऋणात्मक विभव Vo जिस पर प्रकाश विद्युत धारा शून्य हो जाती है को अंतक विभव (cut off
potential) या निरोधी विभव (stopping potential) कहा जाता है। यह आपत्तित प्रकाश की आवृत्ति पर निर्भर करता
है।
प्रकाश विधुत धारा पर प्रकाश की तीव्रता का प्रभाव –
नियत आवृत्ति किन्तु विभिन्न तीव्रताओं, के प्रकाश हेतु हम पाते है कि प्रकाश की तीव्रता में वृद्धि के साथ संतृप्त
धारा में भी वृद्धि होती है। चित्र 13.3 में तीन भिन्न तीव्रताओं के प्रकाश हेतु
प्रकाश विद्युत धारा बनाम एनोड विभव के लिए आलेख दर्शाए हैं।
यहाँ तीव्रताओं के
क्रम इस प्रकार है कि I3>I2>I1 यहाँ
स्पष्ट है कि तीव्रता में वृद्धि के साथ संतृप्त धारा में वृद्धि हो रही है। इससे
ज्ञात होता है कि तीव्रता बढ़ने पर कैथोड से प्रति सैकण्ड उत्सर्जित इलेक्ट्रॉनों
एवं ऐनोड पर प्रति सैकण्ड पहुँचने वाले इलेक्ट्रॉनों की संख्या बढ़ती है जिससे
धारा का मान भी बढ़ता है।
नोट - ध्यान दें कि निरोधी विभव प्रकाश की तीव्रता पर निर्भर नहीं करता है।
प्रकाश विधुत धारा पर आवृत्ति का प्रभाव –
किसी दी गई प्रकाश संवेदी प्लेट के लिए विकिरण की तीव्रता को नियत रखते हुए
यदि आपतित प्रकाश की आवृत्ति को परिवर्तित किया जाए एवं प्रत्येक आवृत्ति के संगत
निरोधी विभव का मापन किया जाए तो यह प्रेक्षित किया जा सकता है कि आपतित प्रकाश की
आवृत्ति जितनी अधिक होगी उतना अधिक निरोधी विभव प्राप्त होगा परन्तु संतृप्त धारा
का एक ही मान प्राप्त होगा I चित्र 13.5 में तीन विभिन्न आवृतियों के लिए एनोड
विभव V के सापेक्ष प्रकाश विधुत धारा के परिवर्तन को प्रदर्शित किया गया है -
यहाँ
आपतित प्रकाश की आवृत्ति जितनी अधिक होगी, प्रकाशिक इलेक्ट्रान की अधिकतम गतिज
ऊर्जा उतनी ही अधिक होगी I