P-N डायोड (Diode) का दिष्टकारी (Rectifier) के रूप में उपयोग
दिष्टकरण (Rectification) वह प्रक्रिया है जिसके द्वारा प्रत्यावर्ती धारा (वोल्टता) को दिष्टधारा (वोल्टता) में परिवर्तित किया जाता है। इस हेतु काम में ली जाने वाली युक्ति दिष्टकारी (Rectifier) कहलाती है।
जैसा हम जानते है की एक P-N संधि डायोड़ अग्रदिशिक अभिनति में धारा
प्रवाहित करता है एवं उत्क्रम अभिनति में धारा प्रवाहित नहीं करता (नगण्य धारा)।
डायोड के इसी एक दिशीय गुण का प्रयोग दिष्टकरण में किया जाता है।
अर्धतरंग दिष्टकारी (Half Wave Rectifier)
परिपथ व्यवस्था - उपरोक्त चित्र में एक अर्धतरंग दिष्टकारी(Half
Wave Rectifier) का परिपथ दर्शाया गया है। इसमें निवेशी प्रत्यावर्ती विभव
स्त्रोत को एक ट्रान्सफार्मर (Transformer) की प्राथमिक कुण्डली से जोड़ा गया है। ट्रान्सफार्मर की
द्वितीयक कुण्डली के श्रेणी क्रम में एक डायोड व लोड प्रतिरोध RL
जोड़े गये हैं। ट्रान्सफार्मर की द्वितीयक
कुण्डली से बिन्दु A व B के मध्य वांछित प्रत्यावर्ती Vs
प्राप्त होता है।
कार्यप्रणाली- प्रत्यावर्ती विभव Vi
(अथवा Vs) के धनात्मक अर्धचक्र के लिये द्वितीयक कुण्डली
का सिरा A धनात्मक विभव व सिरा B
ऋणात्मक विभव पर होने से डायोड का P
सिरा N सिरे से उच्च विभव पर होगा। इस कारण डायोड अग्र अभिनति की
अवस्था में होकर धारा चालन करता है। इस
स्थिति में लोड प्रतिरोध RL,
पर विभवपात होता है।
निवेशी प्रत्यावर्ती विभव के ऋणात्मक अर्ध चक्र में सिरा A
ऋणात्मक व सिरा B धनात्मक होने से डायोंड उत्क्रम अभिनति की
अवस्था में होता है। उत्क्रम अभिनति में धारा प्रवाह नगण्य होने के कारण डायोड को
अचालन की अवस्था में माना जा सकता है। इस कारण परिपथ में धारा नहीं बहेगी। लोड
प्रतिरोध RL,
में केवल एक ही दिशा A
से B की ओर धारा प्रवाह होता है। अतः RL, के सिरों पर उत्पन्न विभवपात दिष्ट (dc)
प्रकृति का होता है।
वस्तुतः इस परिपथ में डायोड द्वारा प्रत्यावर्ती विभव के
ऋणात्मक अर्धचक्र को निरूद्ध (suppress) कर दिया जाता है जिससे पूर्ण प्रत्यावर्ती चक्र के संगत
निर्गत विभव में केवल अर्ध तरंग ही प्राप्त होती है, अतः इस परिपथ को अर्धतरंग दिष्टकारी (Half
Wave Rectifier) कहा जाता है।